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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2709
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-3 प्रश्नपत्र-2 - निर्देशन एवं परामर्श

प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।

उत्तर -

विशिष्ट बालकों का अर्थ

निर्देशन एवं प्रजातन्त्र के दर्शन के अनुसार सभी बालकों को बिना किसी पक्षपात के अपने व्यक्तित्व के समुचित विकासार्थ सुगमतापूर्वक निर्देशन सेवायें उपलब्ध होनी चाहिए। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक बालक की दक्षतायें, क्षमतायें, मानसिक व शारीरिक स्तर आदि पृथक-पृथक होती है, कोई तीव्र बुद्धि होता है तो कोई मन्द बुद्धि, कोई लम्बा होता है तो कोई बौना और कोई अन्तर्मुखी होता है तो कोई बहिर्मुखी। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के कारण कुछ बालक सामान्य व्यवहार नहीं कर पाते हैं, ये सामान्य तथा औसत बालकों से पृथक सहज ही पहचाने जा सकते हैं। ये बालक ही विशिष्ट कहलाते हैं जो बालक सामान्य और औसत से परे हैं, पृथक हैं तथा भिन्न हैं वही विशिष्ट बालक हैं। कुछ बालक असामान्य होते हुये भी सामान्य और औसत बालकों से परे तथा पृथक तो होते हैं किन्तु उनसे बहुत भिन्न नहीं होते, केवल कुछ ही बातों में औसत बालकों से थोड़े बहुत पृथक होते हैं। ऐसे बालकों को विशिष्ट बालकों में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। वही बालक विशिष्ट कहलाते हैं जो औसत तथा सामान्य बालकों से काफी भिन्न और पृथक होते हैं तथा जिसके लिए विशिष्ट शिक्षा की आवश्यकता होती है। जे. टी. हन्ट ने विशिष्ट मानसिक बालकों की परिभाषा देते हुए लिखा है "विशिष्ट बालक वे हैं जो शारीरिक, संवेगात्मक या सामाजिक विशेषताओं में सामान्य बालकों से इतने पृथक हैं कि उनकी क्षमताओं के अधिकतम विकासार्थ भिन्न शिक्षा सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है।"

क्रुकशांक (Cruckshank) ने - विशिष्ट बालकों के सम्बन्ध में कहा है " विशिष्ट बालक वह हैं जो सामान्य, बौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक वृद्धि तथा विकास से इतने पृथक हैं कि वे नियमित तथा सामान्य विद्यालय - शैक्षणिक कार्यों से अधिकतम लाभान्वित नहीं हो सकते हैं तथा जिनके लिए विशिष्ट कक्षाओं या अतिरिक्त शिक्षण व सेवाओं की आवश्यकता होती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि विशिष्ट बालक वह है जो उन बालकों से भिन्न है जो शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक गुणों से औसत है।

शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विशिष्ट बालक - व्यक्तिगत भिन्नता को जानने से पूर्व सभी बालकों को सामान्य श्रेणी में रखा जाता था अर्थात् सभी बालकों को सामान्य मानकर चला जाता था लेकिन मनोविज्ञान के विकास के साथ ही उन बालकों की ओर ध्यान गया जो सामान्य से थोड़ा भी भिन्न थे तथा उन्हें सामान्य बालकों से पृथक बालक समझा जाने लगा। दो बालक चाहे वह जुड़वाँ ही क्यों न हों एक-दूसरे से पृथक या भिन्न समझा जाता है। अतः यह निष्कर्ष निकला कि अधिकांश छात्र औसत से भिन्न होते हैं। ऐसे बालक शारीरिक तथा मानसिक भिन्नता के कारण विशिष्ट कहे जाते हैं। इनमें सीखने की अक्षमता. बाध्यता तथा शारीरिक विकलांगता पायी जाती है।

ऐसे समस्त बालक जो मानसिक रूप से पिछड़े हैं, सीखने में अक्षम हैं या शैक्षिक रूप से पिछड़े हैं, प्रतिभावान या सृजनात्मक बालक हैं तथा बौद्धिक रूप से भिन्न कहलाते हैं। मानसिक रूप से पिछड़े बालकों का व्यवहार सामान्य बालकों से हमेशा भिन्न होता है।

विशिष्ट बालकों के निर्देशन व परामर्श एवं सावधानियाँ

शिक्षा की प्रक्रिया में विद्यार्थियों के समक्ष अनेक समस्यायें आती हैं जिनका समाधान करने हेतु उन्हें उचित निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता होती है। चूँकि समावेशी छात्र विभिन्न आवश्यकताओं से ग्रसित रहते हैं इसलिए वे अपने शिक्षा सम्बन्धी निर्णय या विचार करने में असमर्थ होते हैं जिसके लिए उन्हें उचित परामर्शदाता द्वारा समुचित निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने की आवश्यकता होती है। अतः इन विद्यार्थियों को निर्देशन एवं परामर्श देकर उनके विकास में सहायता दी जा सकती है। इनको विभिन्न शैक्षिक, व्यवहारिक, व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक समस्यायें होती हैं जिसके निवारण के लिए समायोजन एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। ऐसे बालकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे शारीरिक रूप से अपंग बालकों में हीनता की भावना आ जाती है और वे अपने को औसत बालकों से निम्न कोटि का मानते हैं, साथ ही सामान्य बालकों के साथ समायोजन नहीं कर पाते हैं। विशिष्ट बालकों में सापेक्षिक तीव्रता पायी जाती है। प्रायः मदद करने पर ये क्रोधित हो जाते हैं साथ ही ये संकोची एवं एकाकी प्रवृत्ति के बन जाते हैं। प्रतिभाशाली छात्रों में अहम् की भावना आ जाती है और ये सामान्य बालकों से मिलना पसन्द नहीं करते हैं।

विशिष्ट बालकों के लिए निर्देशन व परामर्श में विशिष्ट सावधानियाँ रखनी चाहिए। निर्देशन व परामर्श देने का प्रमुख उद्देश्य छात्रों की शिक्षा के उद्देश्य को समान रूप से प्राप्त करना है जैसे छात्रों की आधारभूत शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति, स्वयं को समझने एवं दूसरे को स्वीकार करने, साथी समूह के साथ सहयोग स्थापित करने, शैक्षिक व्यवस्था में अनुमोदन एवं नियंत्रण के बीच सन्तुलन स्थापित करने, सफल उपलब्धि की प्राप्ति में एवं स्वतन्त्रता प्राप्ति के अवसर आदि। अतः निर्देशन एवं परामर्श का प्रमुख उद्देश्य शैक्षिक कार्यक्रमों पर जोर देना एवं उन्हें मजबूती प्रदान करना होता है। विद्यार्थियों के लिए निर्देशन व परामर्श देते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

(1) छात्रों को स्व क्षमताओं से परिचित कराना - विशिष्ट बालकों को उनकी स्व- क्षमताओं की अनुभूति कराकर उनके परस्पर विकास हेतु उचित निर्देशन व परामर्श देना चाहिए जिससे छात्रों को विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं के चयन के अवसर मिलते हैं। परामर्शदाता का कर्तव्य है कि वह छात्रों को अपनी क्षमताओं की पहचान एवं विकास करने में सहायता करे। परामर्शदाता छात्रों को अपनी क्षमता का प्रयोग प्राप्त अधिगम परिस्थितियों में कराने में प्रमुख भूमिका निभाता है।

(2) छात्रों की समस्याओं का निदान - विशिष्ट बालक जो विभिन्न आवश्यकता वाले होते हैं उनके समक्ष विभिन्न शिक्षा सम्बन्धी समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं जिनके निदान के लिए बालक को सहायता की आवश्यकता होती है। उसे ये सहायता शिक्षक द्वारा निर्देशन व परामर्श के माध्यम से दी जाती है। परामर्शदाता का कर्त्तव्य है कि वह समस्याग्रस्त छात्रों की समस्याओं को जाने और सावधानीपूर्वक उनको उचित निर्देशन व परामर्श प्रदान करे।

(3) छात्रों का उचित मार्गदर्शन - विशिष्ट बालकों को विशेष मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है क्योंकि ये बालक विशिष्ट क्षमता वाले होते हैं। इनके निर्देशन में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती हैं क्योंकि बिना उचित निर्देशन व परामर्श के वे स्वयं अपना निर्णय एवं कार्य नहीं कर सकते हैं अतः परामर्शदाता के लिए आवश्यक हो जाता हैं कि वह इन छात्रों की क्रियाओं व क्षमताओं का विश्लेषण करके उन्हें उचित मार्गदर्शन प्रदान करे जिससे वे अपने वातावरण से अनुकूलन स्थापित करने में सक्षम हो सके।

(4) छात्रों को आपसी सहयोग हेतु निर्देशन - विद्यालय में निर्देशन व परामर्श का मुख्य उद्देश्य छात्रों के मध्य सहयोग का विकास करना एवं उसे बनाये रखना है। परामर्शदाता को छात्रों की आवश्यकताओं की पूर्णतया जानकारी होनी चाहिए। विशिष्ट बालकों को अपने मित्रों, अध्यापकों एवं विद्यालयी पर्यावरण से समायोजन स्थापित करना होता है। अतः परामर्शदाता को उचित परामर्श व निर्देशन द्वारा छात्रों का सहयोग करना चाहिए।

(5) छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु - छात्रों के सर्वांगीण विकास हेतु उसकी समस्त शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक विद्यालयी इत्यादि समस्याओं के समाधान के लिए निर्देशन एवं परामर्श आवश्यक है। निर्देशन व परामर्श द्वारा ही छात्र अपना सर्वांगीण विकास करने में सक्षम हो सके। ऐसी स्थिति में परामर्शदाता का कर्त्तव्य है कि वह छात्रों की समस्याओं को समझे फिर छात्रों का उचित मार्गदर्शन करे।

इस प्रकार स्पष्ट है कि विशिष्ट बालकों को अनेकानेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः अक्षम व प्रतिभावान बालकों को कुशल परामर्शदाता की आवश्यकता होती है। परामर्शदाता का कर्तव्य है कि वह उनके वातावरण को समझे व समायोजन में उनकी सहायता करे। इसके लिए उसका कर्त्तव्य हो जाता है कि वह विशिष्ट बालकों के स्कूल व परिवार के वातावरण की पूर्ण जानकारी रखे, उनकी भावनाओं की समझे, व्यक्ति इतिहास का अध्ययन कर उनकी सीमाओं को समझे। साथ ही शैक्षिक व व्यावसायिक परामर्श न केवल विशिष्ट बालकों को बल्कि उनके माता-पिता तथा अभिभावक को भी प्रदान करे। विशिष्ट बालकों को व्यावसायिक और शैक्षिक सामंजस्य की अति आवश्यकता होती है जिसमें निर्देशन विशिष्ट बालकों के विकास और समायोजन में सहायक हो सकता है। निर्देशन अध्यापक, प्रधानाचार्य या विशेष रूप से नियुक्त कर्मचारी दे सकता है। भारत में आजकल अनेक निर्देशन संस्थाओं की व्यवस्था की गयी है। विद्यालयों को इनका सहयोग अवश्य लेना चाहिये क्योंकि इनके सहयोग के बिना विद्यालय अकेले एक समुचित निर्देशन नहीं बना सकता लेकिन इसके अतिरिक्त समाज व सरकार का दायित्व है कि ऐसे बच्चों के लिए अलग से परामर्श संस्थायें खोली जाये या फिर ऐसे बच्चों को विशिष्ट विद्यालयों में ही शैक्षिक व व्यावसायिक पाठ्यक्रम चलाये जाये। सरकारी योजनाओं का विशेष प्रचार-प्रसार किया जाये एवं अभिभावकों को जानकारी दी जाये कि अपने बच्चों को विशेष शिक्षा व प्रशिक्षण दिलायें। अतः कहा जा सकता है कि विशिष्ट बालकों का निर्देशन व परामर्श बड़ी सावधानीपूर्वक उनकी समस्याओं एवं विशेषताओं का ध्यान रखते हुए किया जाना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- निर्देशन का क्या अर्थ है? निर्देशन की प्रमुख विशेषताओं तथा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- निर्देशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य कौन-कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- निर्देशन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- निर्देशन की आवश्यकता से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से निर्देशन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
  5. प्रश्न- "व्यावसायिक निर्देशन शैक्षिक निर्देशन पर प्रभुत्व रखता है।" स्पष्ट कीजिये एवं इस कथन का औचित्य बताइये।
  6. प्रश्न- निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- निर्देशन की आधुनिक प्रवृत्तियाँ क्या हैं?
  8. प्रश्न- निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- निर्देशन के विषय क्षेत्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- निर्देशन तथा शिक्षा में कौन-कौन से मुख्य अन्तर हैं? स्पष्ट कीजिए।
  11. प्रश्न- निर्देशन के कार्य क्या हैं?
  12. प्रश्न- निर्देशन की प्रकृति का उल्लेख कीजिए।
  13. प्रश्न- भारत में निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- "समृद्ध भारत के लिये निर्देशन सेवाओं की अत्यधिक आवश्यकता है।" विभिन्न परिप्रेक्ष्य में इस कथन की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
  16. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के मुख्य उद्देश्यों तथा शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर शैक्षिक निर्देशन के स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? व्यक्तिगत निर्देशन के स्वरूप एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्यों या कार्यों का वर्णन कीजिए।
  21. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व और आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- छात्रों के व्यावसायिक निर्देशन में विद्यालय क्या भूमिका निभा सकता है?
  23. प्रश्न- "व्यक्तिगत निर्देशन, निर्देशन का मूलाधार है।" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  24. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- शैक्षिक और व्यावसायिक निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन की शिक्षा के क्षेत्र में क्यों आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।
  28. प्रश्न- व्यक्तिगत निर्देशन किसे कहते हैं? इसके मुख्य उद्देश्य बताइए।
  29. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन के सिद्धान्त क्या है स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- शैक्षिक निर्देशन से आप क्या समझते हैं? इसकी उपयोगिता का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- सूचना सेवा से आप क्या समझते हैं? सूचना सेवाओं के उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- सूचना सेवा की कार्य विधि का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- नियोजन सेवा से आप क्या समझते हैं? विद्यालय के नियोजन सम्बन्धी कार्यों एवं उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- किसी विद्यालय के निर्देशन सेवा के संगठन की आधारभूत आवश्यकताओं का उल्लेख कीजिए।
  37. प्रश्न- निर्देशन सेवा में विद्यालय स्तर पर कार्यरत प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का विस्तारपूर्वक उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अनुवर्ती सेवाओं से आप क्या समझते हैं? इसका क्या प्रयोजन है? अध्ययनरत छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- छात्र सूचना या वैयक्तिक अनुसूची सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- सूचना सेवा की आवश्यक सामग्री का उल्लेख कीजिए।
  41. प्रश्न- नियोजन सेवा के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- परामर्श सेवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- सूचना सेवा कितने प्रकार की होती है? विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- व्यावसायिक निर्देशन में आवश्यक सूचनाओं को बताइए।
  45. प्रश्न- व्यक्ति निर्देशन में आवश्यक सूचना को बताइये।
  46. प्रश्न- भारत में व्यवसाय से सम्बन्धित सूचनाओं के प्रमुख स्रोत क्या हैं?
  47. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में परिवार की क्या भूमिका होती है?
  48. प्रश्न- अनुकूलन सेवा से आपका क्या अभिप्राय है? इसकी आवश्यकता के क्या कारण हैं? स्पष्टतया समझाइये।
  49. प्रश्न- उपचारात्मक सेवाओं से आप क्या समझते हैं?
  50. प्रश्न- अनुवर्ती अध्ययन की समस्याएँ एवं समाधान का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  52. प्रश्न- भूतपूर्व छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन की विधियों का वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- कृत्य विश्लेषण एवं कृत्य संतोष में क्या सम्बन्ध है?
  54. प्रश्न- विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं से आप क्या समझते हैं? विद्यालय निर्देशन- सेवाओं के संगठन के प्रचलित सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  55. प्रश्न- माध्यमिक स्तर पर निर्देशन सेवाओं के संगठन का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा के प्रमुखं कार्य कौन-कौन से हैं? प्राथमिक तथा सैकेण्ड्री स्कूल स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम संगठन के उद्देश्यों तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- विद्यालयी निर्देशन सेवाओं के संगठन की मुख्य संकल्पनाएँ क्या हैं? इसकी आवश्यकता व क्षेत्र क्या है? वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- वर्णन कीजिए कि आप एक शिक्षक के रूप में माध्यमिक स्तर पर निर्देशन कार्यक्रम को किस प्रकार से संगठित करेंगे?
  59. प्रश्न- विद्यालय निर्देशन सेवा द्वारा किये जाने वाले मुख्य कार्यों की विवेचना कीजिए।
  60. प्रश्न- विद्यालय की निर्देशन संगठन सेवा का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के सफल संगठन के लिए किन-किन मुख्य बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रमों के सफल संचालन हेतु किन-किन कर्मचारियों की आवश्यकता होती है? स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं के विभिन्न रूपों तथा सिद्धान्तों को संक्षिप्त रूप में बताइए।
  64. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के महत्व की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- निर्देशन में मूल्यांकन के सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श के उद्देश्य तथा सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श की आवश्यकता तथा महत्व का वर्णन कीजिए। अथवा छात्र परामर्श की आवश्यकता बताइये।
  68. प्रश्न- परामर्श की प्रक्रिया को समझाइए।
  69. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  70. प्रश्न- परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- परामर्श और निर्देशन में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- एक अच्छे परामर्शदाता में कौन-कौन से गुणों का होना आवश्यक है? स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- परामर्श से सम्बन्धित प्रमुख परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- परामर्श के उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  75. प्रश्न- "एक परामर्शदाता के लिये समूह गतिशीलता का ज्ञान होना आवश्यक है।" स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- धर्म-परामर्श में सह-सम्बन्ध बताइये।
  77. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त-अध्ययन विधि से आप क्या समझते हैं? इसके गुणों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र क्या है? संचित अभिलेख पत्र की विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? इस पत्र की उपयोगिता की व्याख्या कीजिए।
  79. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि से आप क्या समझते हैं? साक्षात्कार प्रविधि के मुख्य तत्त्वों विशेषताओं एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- निर्धारण मापनी या रेटिंग स्केल से आपका क्या अभिप्राय है? इनकी मुख्य विशेषताओं तथा प्रकारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के कितने प्रकार हैं? अनिर्देशित साक्षात्कार प्रविधि के लाभ एवं सीमाएँ बताइए।
  82. प्रश्न- संचित अभिलेख पत्र के निर्माण के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  83. प्रश्न- व्यक्तिवृत्त अध्ययन प्रविधि की सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  84. प्रश्न- साक्षात्कार प्रविधि के गुणों का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि या निर्धारण मापनी को परिभाषित कीजिए।
  86. प्रश्न- साक्षात्कार विधि के मुख्य उपयोगों के बारे में संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
  88. प्रश्न- निरीक्षण या अवलोकन प्रविधि के दोषों पर प्रकाश डालिए।
  89. प्रश्न- प्रश्नावली प्रविधि के अर्थ तथा परिभाषाओं को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- क्रम निर्धारण प्रविधि की कमियों या सीमाओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- संचयी आलेख का अर्थ बताइए।
  92. प्रश्न- परामर्श प्रदान करने की मुख्य प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श की प्रविधियों की मुख्य धारणाओं, सोपानों तथा लाभ एवं कमियों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- परामर्श की प्रमुख प्रविधियाँ कौन-कौन सी हैं? निर्देशन और परामर्श में साक्षात्कार प्रविधि क्यों अधिक उपयोगी सिद्ध हुई है? स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- समन्वित परामर्श से आप क्या समझते हैं? समन्वित परामर्श की मुख्य धारणाओं, लाभों तथा कमियों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- परामर्श क्या है? परामर्श तथा निर्देशन में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  96. प्रश्न- निर्देशन के साधन क्या हैं?
  97. प्रश्न- निर्देशात्मक परामर्श की प्रमुख विशेषताओं और सीमाओं पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- अनिदेशात्मक परामर्श से क्या तात्पर्य है? अनिदेशात्मक परामर्श की मूल धारणाओं का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- निर्देशीय तथा अनिर्देशीय परामर्श में कौन-कौन से मुख्य अन्तर पाए जाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  100. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- अनिर्देशीय परामर्श के मुख्य कार्यों को संक्षेप में बताएँ।
  102. प्रश्न- समन्वित परामर्श मुख्य चरणों या पदों को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट कीजिए।
  103. प्रश्न- निर्देशीय परामर्श के मुख्य चरण या सोपान कौन-कौन से हैं? स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- परामर्श के किसी एक उपागम का वर्णन कीजिए।
  105. प्रश्न- परामर्शदाता की विशेषताओं, गुणों तथा व्यावसायिक नीतिशास्त्र का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- परामर्शदाता की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  107. प्रश्न- परामर्शदाता में किस प्रकार का अनुभव होना आवश्यक है, बताइये।
  108. प्रश्न- परामर्शदाता का प्रशिक्षण कार्यक्रम बताइये।
  109. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  110. प्रश्न- परामर्शदाता के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषकों का उल्लेख कीजिए।
  111. प्रश्न- क्रो एवं क्रो के अनुसार परामर्शदाताओं के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- परामर्शार्थी और परामर्शदाता के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की आवश्यकता बताइए तथा निर्देशन केन्द्रों के उद्देश्य भी बताइए।
  114. प्रश्न- भारत में निर्देशन एवं परामर्श की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  115. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों के कार्य बताइए।
  116. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श केन्द्रों की समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
  117. प्रश्न- बुद्धि से आप क्या समझते हैं? बुद्धि के प्रकार, विशेषताएँ एवं सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  118. प्रश्न- बुद्धि के मापन से आप क्या समझते हैं? बुद्धि परीक्षणों के प्रकार का वर्जन करते हुए बुद्धिलब्धि को कैसे ज्ञात किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- शिक्षा और निर्देशन में बुद्धि परीक्षणों की उपयोगिता की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- रुचि क्या है? रुचि की महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- अभिवृत्ति का क्या अर्थ है? अभिवृत्ति परीक्षण का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- 'रुचि आविष्कारिकाएँ' क्या मापन करती हैं? कम से कम दो रुचि आविष्कारिकाओं का नाम बताइए।
  123. प्रश्न- बुद्धि कितने प्रकार की होती है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- बुद्धि की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- बुद्धि के अर्थ तथा स्वरूप पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  126. प्रश्न- रुचि का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
  127. प्रश्न- रुचियों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं? संक्षेप में बताइये।
  128. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में रुचि सूचियों के लाभ का वर्णन कीजिए।
  129. प्रश्न- रुचि-सूचियों की कमियां या दोषों का उल्लेख कीजिए।
  130. प्रश्न- अभिवृत्ति के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
  131. प्रश्न- अभिवृत्ति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  132. प्रश्न- भारतवर्ष में रुचि मापन के कार्यों पर प्रकाश डालिये।.
  133. प्रश्न- निर्देशन सेवाओं में कौन-कौन से कर्मचारी भाग लेते हैं? प्रधानाचार्य एवं अध्यापक की निर्देशन सम्बन्धी भूमिका की विवेचना कीजिए।
  134. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श में अभिभावक एवं वार्डेन की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  135. प्रश्न- विशिष्ट बालकों से क्या अभिप्राय है? उनकी क्या विशेषताएँ हैं? पिछड़े बालकों की शिक्षा एवं समायोजन के लिये निर्देशन व परामर्श का एक कार्यक्रम तैयार कीजिए।
  136. प्रश्न- निर्देशन एवं परामर्श कर्मचारी वर्ग के रूप में प्रधानाचार्य की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  137. प्रश्न- विशिष्ट बालकों को निर्देशन व परामर्श देते समय क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिये? वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- चिकित्सा कर्मचारी किस प्रकार निर्देशन प्रक्रिया में योगदान देते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  139. प्रश्न- निर्देशन प्रक्रिया में शारीरिक शिक्षक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  140. प्रश्न- निर्देशन कार्यक्रम में परामर्शदाता की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- प्रधानाचार्य के निर्देशन सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  142. प्रश्न- निर्देशन में शिक्षक की भूमिका क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोचिकित्सक की भूमिका बताइये।

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